First Published on Friday, October 10, 1997 by Vineet Narain
1996 की शुरूआत देश की भ्रष्ट राजनीति को बुरी तरह झकझोरने वाले एक धमाके के साथ हुई थी। जब पहली बार राजनेताओं, मंत्रियों, राज्यपालों और मुख्यमंत्रियों को ‘हवाला कांड’ में चार्जशीट किया गया। इसके बाद सेंटकिट्स, झामुमो रिश्वत कांड, लखुभाई पाठक रिश्वत कांड, संचार घोटाला, यूरिया घोटाला, जयललिता कांड, चैरासी के दंगों की सुनवाई, मकानों और पेट्रोंल पंपों के अवैध आवंटन का घोटाला और चारा घोटाला जैसे दर्जनों घोटाले एक के बाद एक सामने आने लगे। पहली बार देश की जनता को लगा कि कानून की निगाह से कोई बच नहीं सकता। चाहे वो किसी भी पद पर क्यों न हो।
किंतु 1997 की शुरूआत लोकतंत्रा के इतिहास में अपशकुनी रही। जब एक-एक करके सभी नेता अदालतों से छूटने लगे। देश की जनता हतप्रभ है कि ऐसा क्यों हो रहा है ? उसे यह सवाल भी खाए जा रहा है कि पिछले 50 वर्ष में कभी भी कोई बड़ा नेता, मंत्रh या अफसर भ्रष्टाचार के मामले में पकड़ा क्यों नहीं गया ? जबकि एक अंतर्राष्ट्रीय सर्वेक्षण के अनुसार भारत दुनियां के दस भ्रष्टतम राष्ट्रों में से ण्क है। एक कहावत है कि, ‘शासक को ईमानदार होना ही नहीं चाहिए बल्कि दीखना भी चाहिए’। पूरा देश बिहार बन जाएगा
इस सबका नतीजा यह हुआ कि लालू यादव चार्जशीट होने के बाद भी कुर्सी छोड़ने को तैयार नहीं थे। यह तो आगाज है आगे-आगे देखिए होता है क्या ? एक बार पकड़े जाने के बाद जब यह नेता छूटते जाएंगे तो ये डंके की चोट पर ऐलान करेंगे कि, ‘देखा हमारा कोई कुछ नहीं बिगाड़ सका?’ फिर बिहार और उत्तर प्रदेश की तरह आए दिन अपहरण, अवैध कब्जें, लूटपाट पूरे देश में होंगे और कोई सुनने वाला नहीं होगा।
षड़यंत्रा किसके खिलाफ: नेताआs के या देश के ?
हवाला कांड को ही लीजिए बजाए शमिंदा होने के ये नेता आज देश को गुमराह करने में जुटे हैं। ये कहते हैं कि इन्हें षड़यंत्रा करके हवाला कांड में फंसाया गया। आप जानते हैं कि मार्च 1991 में दिल्ली पुलिस ने शाहबुद्दीन गौरी और अशफाक हुसैन लोन को लाखों रूपए के बैंक ड्राफ्टों और नकद के साथ गिरफ्तार किया था। ये पैसा कश्मीर के आतंकवादी संगठनों को भेजा जा रहा था। इनकी सूचना पर पुलिस और सीबीआई ने देश के कई हवाला कारोबारियों और जैन बंधुओं के यहां छापा डाला। जिसमें करोड़ों रूपए का हिसाब-किताब, लाखों रूपए की नकदी, सोने की छड़े, पचास देशों की मुद्राएं व संवेदनशील दस्तावेज मिले थे। यह धन दुबई और लंदन से अवैध रूप से आ रहा था और जैन बंधुओं के मार्फत देश की राजनीति में ताकतवर लोगों में बंट रहा था। इतनी बड़ी जब्ती और इतनी सारी जानकारी सीबीआई के इतिहास में शायद ही कभी मिली हो। इसके फौरन बाद जैन बंधु से जुड़े आला अफसरों, मंत्रियों और दूसरे अधिकारियों के घर छापे डालकर कड़ी पूछताछ व धर-पकड़ करनी चाहिए थी। पर बड़े राजनेताओं के दबाव के कारण सीबीआई ने देशद्रोह के हवाला कांड को बड़ी बेशर्मी और बेईमानी से दबा दिया। इसे अपने विरूद्ध षड़यंत्रा बताने वाले इन नेताओं से कोई पूछे कि
क्या आतंकवादियों को धन पहुंचाने वालों को पकड़ना इनके विरूद्ध षड़यंत्रा था ?
क्या इनको लगता है कि इन युवको के विरूद्ध टाडा के तहत कार्रवाई नही करनी चाहिए थी?
साफ है कि जैन बंधुओं को सिर्फ इसलिए बचाया गया ताकि उनके चक्कर में हवाला आरोपी नेता न पकड़े जाए ? सीबीआई में तब सुगबुगाहट हुई जब जुलाई 1993 में कालचक्र वीडियो के कैमरों ने इस मामले की खोजबीन शुरू की। पर असली हरकत में वो तब आई जब हमारी जनहित याचिका पर सुप्रीम कोर्ट के माननीय न्यायधीशों ने सीबीआई को उसके निकम्मेपन के लिए फटकारा। ये इसे षड़यंत्रा कहते हैं। तो यह षड़यंत्रा किसने किया ? जनहित याचिका दायर करके हमने या सर्वोच्च न्यायालय के न्यायधीशों ने ?
1991 में सीबीआई को जैसे ही पता चला कि बड़े-बड़े नेता जैन बंधुओं से अवैध रकम पाते रहे हैं। तो उसने जांच को वहीं रोक दिया। फिर ये षड़यंत्रा किसके खिलाफ था, इनके या देश के ?
अगस्त 1993 में कालचक्र वीडियो मैगजीन ने जब बार-बार इनका इंटरव्यू लेने का प्रयास किया तो ये सब नेता इतने घबरा क्यों गए थे ? मैं इनसे सिर्फ दो सवाल पूछना चाहता था। क्या ये जैन बंधुओं को जानते हैं ? और क्या इन्होंने जैन से इतने पैसे लिए ? अगर इनके पास छुपाने को कुछ नहीं था? तो सच बोलने में इतनी घबराहट क्यों थी ?
संसदीय चुप्पी ?
इनके खिलाफ आरोप पत्रा जनवरी-फरवरी 1996 में दाखिल हुए। जबकि इनका नाम हवाला कांड में अगस्त 1993 से समाचारों में था। यदि यह इनके विरूद्ध षड़यंत्रा था तो इसके खिलाफ इन वर्षों में इन्होंने आवाज क्यो नहीं उठाई? क्या ये मान कर चुप बैठे रहे कि किसी नेता का कुछ नहीं बिगड़ेगा। इसलिए क्यों बर्र के छत्ते में हाथ डाला जाए? वैसे 11 नेताओं ने माना है कि जैन डायरी में दर्ज धन उन्होंने लिया था, इस बारे में इनका क्या ख्याल है?
ये नेता अच्छी तरह जानते हैं कि हवाला कांड मात्रा भ्रष्टाचार का नहीं बल्कि देशद्रोह का भी कांड है। क्योंकि यह कश्मीर के आतंकवाद और देश की सुरक्षा से जुड़ा मामला है। फिर इन्होंने संसद में शोर मचा कर हवाला कांड में ईमानदारी से जांच की मांग क्यों नहीं की? जैसे आज तक हर कांड पर करते आए हैं। यह अनैतिक चुप्पी क्यों? इस तरह चुप रह कर इन नेताओं और इनके साथियों ने देश के साथ जो गद्दारी की है उसका क्या ख़ामियाजा ये देश को देने को तैयार हैं ? ऐसे अनैतिक आचरण के बाद इनकी ये ‘नैतिक’ जीत कैसे है?
सीबीआई के आपराधिक कारनामे पाठक जानते हैं कि सीबीआई हवाला कांड के मामले में सुप्रीम कोर्ट तक में झूठ बोलती आई है। ताकि इनके जैसे बड़े राजनेताओं को बचा सके। मसलन सीबीआई ने जनवरी 1994 में दावा किया कि वह मुस्तैदी से जांच कर रही है। जबकि 4 वर्ष बाद मार्च’95 तक आकर भी उसने प्राथमिक कार्रवाई भी नहीं शुरू की थी। सीबीआई ने लिखकर कोर्ट में कहा कि जैन बंधुओं के यहां से छापे में बरामद 50 देशों की विदेशी मुद्राओं को वो पहचान नहीं पाई है। क्या ये देश सौर्यमंडल से बाहर के नक्षत्रों पर हैं ? सीबीआई ने दावा किया कि वह ‘तमाम कोशिशों के बावजूद जैन बंधुओं को नहीं ढूंढ पाई। मजबूरन उसे जैन बंधुओं को ढंwढ़ने वाले इश्तहार लगवाने पड़े, तब भी बात नहीं बनी तो उसे आव्रजन अधिकारियों की मदद लेनी पड़ी।’ जबकि जैन बंधु खुलेआम दिल्ली में घूम रहे थे, आलीशान दावतें दे रहे थे और इसकी खबरें अखबारों में छप रही थी। दिल्ली उच्च न्यायालय के सामने भी सीबीआई ने अधूरे तथ्य रखे ताकि हवाला कांड के आरोपी नेताओं को निकल भागने का रास्ता मिल सके । ऐसे तमाम झूठ पर खड़ी यह ‘असत्य पर सत्य की विजय’ कैसे है ?
अब जबकि इनके ‘सर पर से बोझ उतर गया है’ तब क्या इनमें यह नैतिक बल है कि हवाला कांड में सीबीआई की बेईमानियों के खिलाफ निष्पक्ष जांच की मांग करें ? ये नेता और इनसे हमदर्दी दिखाने वाले बुद्धिजीवी क्या देश की जनता को यह बताने को तैयार है कि यह मांग क्यों नहीं कर रहे ?
सर्वोच्च न्यायलय पर दबाव डालने वाला आज़ाद क्यों ?
14 जुलाई 1997 को सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायधीश माननीय श्री जेएस वर्मा जी ने यह बता कर कि हवाला मामले को दबाने के लिए उन पर दबाव डालने की कोशिश की जा रही है, सारे देश में सनसनी फैला दी। किंतु माननीय मुख्य न्यायधीश श्री जेएस वर्मा उस अपराधी का नाम बताने तक से बच रहे हैं जिसने उन पर व उनके सहयोगी जजों पर ‘दबाव’ डालने की कोशिश की। हवाला आरोपियों के हितैषी इस व्यक्ति ने ‘न्यायालय की अवमानना कानून’ को तोड़ने का गंभीर अपराध किया है। जिसकी सजा उसे मिलनी ही चाहिए। किंतु संसद, सुप्रीम कोर्ट बार काउंसिल और अखबारों के संपादकीयों में जोरदार मांग उठने के बावजूद माननीय न्यायधीशगणों की चुप्पी, इस अपराधी को संरक्षण दे रही है। इन हालातों में जनता क्या उम्मीद करे ? इससे यह तो जाहिर हो ही गया कि हवाला केस इतना दमदार है कि इसमें फंसे सभी प्रमुख दलों के नेता हर कीमत पर इसे दबा देना चाहते हैं। कोई भी दल हवाला कांड में ईमानदारी से जांच की मांग नहीं कर रहा। स्वर्ण जयंती यात्रा के बहाने पूरे देश में भ्रष्टाचार के विरूद्ध बिगुल बजा कर लौटे भाजपा के नेता श्री लालकृष्ण आडवाणी व उनके अन्य साथी नेता तक यह हिम्मत नहीं जुटा पा रहे हैं, आखिर क्यों ?
विचित्रा विरोधाभास दरअसल हवाला कांड पूरी दुनियां में पहला ऐसा बड़ा कांड है कि जिसमें सत्तापक्ष व विपक्ष दोनों लिप्त हS। इसलिए इसलिए इस कांड की जांच की मांग कोई नहीं कर रहा। इस कांड ने भ्रष्ट राजनीति को बुरी तरह झकझोर कर रख दिया है। भारत के इतिहास में पहली बार दर्जनो मंत्रियों, राज्यपालों और मुख्यमंत्रियों के विरूद्ध भ्रष्टाचार के मामले में आरोप पत्रा इसी कांड में दाखिल हुए। एक साल में तीन प्रधान मंत्रh बदल गए और एक के बजाए 15 दल मिलकर सरकार चलाने पर मजबूर हैं। फिर भी इतने बड़े कांड में निष्पक्ष जांच की मांग को लेकर कोई जन प्रदर्शन नहीं हो रहे, कोई सेमिनार, कोई धरने नहीं हो रहे, कोई हस्ताक्षर अभियान नहीं चलाए जा रहे, संसद का कोई बर्हिगमन नहीं कर रहा, कोई इस्तीफे नहीं मांगे जा रहे।
सावधान आपका ध्यान हटाया जा रहा है
ऐसे में देश की जनता को अच्छी तरह समझ लेना चाहिए कि अखबार और टेलीविजन के माध्यम से हर घोटाले पर शोर मचाने वाले लोग कितनी होशियारी से हवाला कांड से आपकी निगाह हटा देना चाहते हैं। इसीलिए दिल्ली हाई कोर्ट के निर्णय की खामियों को उजागर करते हुए हमने एक पर्चा छापा था। इसमें उन तमाम कानूनी मुद्दों का ब्यौरा था जिनसे यह सिद्ध होता है कि हवाला आरोपी नेताओं व दूसरे लोगों के खिलाफ कोई जांच ही नहीं की गई है। इस पर्चे में दिल्ली हाई कोर्ट के निर्णय में ‘एविडेंस एक्ट’ के अनेक प्रावधानों की उपेक्षा का भी विवरण था। इस पर्चे में दी गई जानकारी को आधार बनाकर ही सीबीआई ने सर्वोच्च न्यायलय में अपील दायर की है। तो बिना जांच हुए ही इस तरह घोटालेबाज नेताओं का छूट जाना इस देश की करोड़ों जनता के साथ विश्वासघात है। कानून में आस्था रखने वाले लोग काफी चिंतित हैं। किंतु पिछले कुछ हफ्तों से जो बहस सर्वोच्च न्यायलय में चल रही है उसमें हवाला केस की जांच की खामियों का जवाब ढूंढने की बजाय भविष्य की सावधानियों पर समय लगाया जा रहा है। यह तो ऐसा हुआ कि चोर निकल कर भागा जा रहा हो और हम शोर मचाए कि अगली बार मजबूत ताला लगाना।
जनता क्या करे ?
उधर आजादी के पचासवें वर्ष में देश के कुछ गिने-चुने समाजसेवी, बुजुर्ग पत्राकार और बुद्धिजीवी देश में जगह-जगह गोष्ठियां करके बिगड़ी हालत पर चिंता जता रहे हैं। भ्रष्टाचार से लड़ने के लिए लोगों का आव्हान कर रहे हैं। पर इनकी अपीलों का कोई असर नहीं पड़ रहा। क्योंकि ये बैठकें बयान जारी करने तक सीमित रहती हैं। मजे की बात यह है कि जिनके विरूद्ध ये लड़ाई लड़ी जानी है, उनसे ही सुधार की अपील की जाती है। आज जबकि हवाला घोटाले से लेकर दूसरे घोटालों में अनेक दलों के बड़े नेता रंगे हाथ पकड़े जा चुके हैं उस वक्त बैठकें करने से क्या होगा? जरूरत सब लोगों को एकजुट होकर आम जनता को जागृत करने की है। ताकि हर कस्बे और शहर में लोग सड़कों पर उतर आएं और सफेदपोश अपराधियों के खिलाफ निष्पक्ष व तीव्रता से जांच की मांग करें और इन्हें सजा देने की मांग करें। अब तो भारत के वर्तमान राष्ट्रपति जी तक ने जनता से सत्याग्रह करने की अपील की है। फिर संकोच कैसा ? भारत से ज्यादा जागरूक तो बांग्लादेश के आम नागरिक हS। जिन्होंने सड़कों पर उतर कर, चुनाव जीत कर आए राष्ट्रपति को जेल पहुंचवा दिया। कुछ बड़े नेताओं के सजा मिलने से भ्रष्टाचार जड़ से समाप्त नहीं होगा। परंतु उसके समाप्त होने की प्रक्रिया शुरू हो जाएगी। कानून का डर मन में बैठने लगेगा।